नामधारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले स्वर्ण सिंह की ईमानदारी का ही आज नतीजा है कि जो काम उनके परिजनों ने 1953 में कोटद्वार में शुरू किया. आज भी उसी काम को वह अपने बेटों के साथ आगे बढ़ा रहे है.
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